सोमवार, 6 अप्रैल 2009

करूणारूपी अमृत ...

मेरे विचार में सहनशीलता, शांति, इन्द्रियनिग्रह और मन में करुनारुपी अमृत के रस का होना ही नगर या वन कहिं पर भी सच्चा तप है.
शेष जितनी भी क्रियाए है, वे तो केवल शरीर का सुखाना मात्र है .. मक्

1 टिप्पणी:

  1. कबीरा पर आगमन एवं उसनें सम्मिलित होने के लियेअभारी हूँ | विचार-प्रवाह यहीं पर थम क्यों गए ? इस पर शब्द पुष्टिकरण मत रखिये हटा दें !

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